
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। कहा जाता है कि होलिका दहन के साथ-साथ आग में व्यक्ति अपनी सारी बुराईयां, सारी दुश्मनी को जला देता है। व्यक्ति स्वयं में एक नया उत्साह और जीत को पैदा करता है। होलिका दहन को लेकर एक धार्मिक मान्यता भी है कि होलिका दहन की पूजा पूरे विधि विधान से की जानी चाहिए। ऐसा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं बल्कि सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। कहते हैं कोई भी पूजा कथा और आरती के बिना अधूरी ही मानी जाती है। ऐसे में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और प्रहलाद से जुड़ी कथा होलिका दहन के दिन सुनाई जाए तो बहुत ही शुभ माना जाता है। हमारा लेख इसी कथा पर आधारित है। आज हम आपको इसके माध्यम से ये बताएंगे कि होलिका दहन पर कौन सी कथा पढ़ें।
होलिका दहन की कथा
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनंत भक्त था। राक्षस राज हिरण्यकश्यप चाहता था कि उसका पुत्र भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ उसकी भक्ति करें। लेकिन भक्त प्रहलाद हर वक्त भगवान विष्णु की भक्ति में डूबा रहता था। इस बात से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मारने का निर्णय लिया। इसी के लिए उन्होंने तरह-तरह की यातनाएं देनी शुरू कर दीं। जब उन यातनाओ से भी भक्त प्रहलाद का कुछ नहीं हुआ तो अपनी बहन होलिका की मदद से भक्त प्रहलाद को जलाने की योजना बनाई। होलिका को वरदान था कि वह आग से नहीं जल सकती। यही सोचकर होलिका अपनी गोद में भक्त प्रहलाद को लेकर बैठ गई। लेकिन भक्त प्रहलाद फिर भी भगवान विष्णु की भक्ति से बच गया और होलिका जल गई। उसके बाद भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से नरसिंह के अवतार का जन्म किया और राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया। तभी से होलिका दहन मनाया जाता है।
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