पश्चिम बंगाल के इस चुनाव में भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए एडी से चोटी तक जोर लगाया, लेकिन बनर्जी ऐसी सैनिक और कमांडर निकलीं जिन्होंने भगवा दल की चुनावी युद्ध मशीन को पराजित कर घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। आपको बता दें की ममता बनर्जी 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में कोलकाता दक्षिण सीट से सांसद रह चुकी है। ममता की पार्टी टीएमसी ने 295 विधानसभा सीटों पर शानदार जीत हासिल की है। जिससे ममता का कद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा है। क्योंकि बनर्जी का चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी व गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को मजबूत करने में मददगार साबित होंगी। यहां टीएमसी ने तीसरी बार जीत दर्ज की है। बनर्जी के आगे सारे सियासी दावपेंच फेल हो गए हैं।
आठ साल तक बिना चुनौती किया शासन
आपको बता दें कि बनर्जी ने एक दशक से अधिक पहले सिंगूर और नंदीग्राम में सड़कों पर हजारों किसानों का नेतृत्व करने से लेकर आठ साल तक राज्य में बिना किसी चुनौती के शासन कर चुकी है। किया। उनके शासन को 2019 में तब चुनौती मिली जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर अपना परचम फहराया। बनर्जी ने अपनी राजनीतिक यात्रा को तब तीव्र धार प्रदान की जब उन्होंने 2007-08 में नंदीग्राम और सिंगूर में नाराज लोगों का नेतृत्व करते हुए वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ राजनीतिक युद्ध का शंखनाद किया था। इसके बाद वह सत्ता के शक्ति केंद्र \’नबन्ना तक पहुंच गई। पढ़ाई के दिनों में बनर्जी ने कांग्रेस स्वयंसेवक के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। यह उनके करिश्मे का ही कमाल था कि वह संप्रग और राजग सरकारों में मंत्री बन गईं।
कम्युनिस्टों के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी हो गई थीं ममता
ममता बनर्जी राज्य में औद्योगीकरण के लिए किसानों से \’जबरनÓ भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर नंदीग्राम और सिंगूर में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी हो गईं थी। बनर्जी ने ही इस आंदोलन का नेतृत्व किया। ये आंदोलन उनकी किस्मत बदलने वाला रहा। तृणमूल कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई। जनवरी 1998 में बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होने के बाद तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ संघर्ष करने के कारण उनकी पार्टी आगे बढ़ती गई।
2001 में जीती थीं 60 सीटें
राज्य में 2001 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो तृणमूल कांग्रेस ने 294 सीटों में से 60 सीट जीती थीं जबकि वाम मोर्चे को 192 सीट मिलीं थी। 2006 के के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ताकत आधी रह गई। उनकी पार्टी 30 सीट ही जीत पाई। वाम मोर्चे को 219 सीटों पर जीत मिली थीं।
34 साल की सत्ता को उखाड़ फैंका
वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ फैंका। उनकी पार्टी को 184 सीट मिलीं जबकि जबकि कम्युनिस्ट 60 सीटों पर सिमट कर रह गई। उस समय वाम मोर्चा सरकार विश्व में सर्वाधिक लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली निर्वाचित सरकार थी। 2016 में भी बनर्जी ने अपनी पार्टी को शानदार जीत दिलाई। इस समय तृणमूल कांग्रेस ने 211 सीटें जीतीं।
बनर्जी को शुभेंदु का लगा था बड़ा झटका
इस बार विधानसभा चुनाव में बनर्जी को बड़ा झटका लगा। क्योंकि बनर्जी के विश्वासपात्र रहे शुभेन्दु अधिकारी और पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए। बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं बनर्जी पार्टी के कई नेताओं की बगावत के बावजूद अंतत: अपनी पार्टी को तीसरी बार भी शानदार जीत दिलाने में कामयाब रहीं।
