दत्तोपंत ठेंगड़ी का नाम तो आपने सुना ही होगा। वे एक मजदूर नेता, आरएसएस प्रचारक, विचारक और चुने हुए सांसद भी थे। मैं यहां इनका जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि उस समय के राजनीतिक दौर में ये नेता सत्य और विश्वास के लिए किसी से भी टकराने का मादा रखते थे। चाहे इनमें अपने ही क्यों न शामिल हो। उनमें से एक थे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिनसे ठेंगड़ी भिड़ गए थे। आपको बता दें कि 2001 का वो समय जब ठेंगड़ी मुक्त बाजार व्यवस्था को लेकर अटल सरकार को चुनौति देने के लिए रामलीला मैदान में रैली कर रहे थे। उस समय भामसं की रैली में ठेंगड़ी सीधे तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की खबर ले रहे थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि विभिन्न सेक्टर्स को एफडीआइ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के लिए खोलना एक आपराधिक कृत्य है। इस लांछन पर सिन्हा तिलमिला उठे थे और इस बात से आहत होकर सिन्हा ने अटल के पास जाकर अपने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली थी। लेकिन अटल ने उनकी इस बात को स्वीकार नहीं किया। इसके बावजूद ठेंगड़ी के तेवर नरम पडऩे वाले नहीं थे। वे सिन्हा पर दबाव बढ़ाते रहे। इसका परिणाम ये निकला की सिन्हा को एक साल बाद वित्त मंत्री का पद छोडऩा पड़ा।
ये चाहते थे ठेंगड़ी
ठेंगड़ी के निशाने पर सिन्हा नहीं बल्कि विनिवेश मंत्री अरुण शौरी भी थे। मामला ये था कि विभिन्न पीएसयू का विनिवेश कैसे हो। सिन्हा और शौरी यह काम रणनीतिक बिक्री यानी स्ट्रैटजिक सेल के माध्यम से करना चाहते थे। ठेंगड़ी इतना चाहते थे कि यह काम पीएसयू को स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध कर किया जाए।
क्या संघ को आती है याद
आज सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश पर सरकार का रुख वही हो गया है, जिसकी ठेंगड़ी मुखालफत करते थे। ठेंगड़ी अब नहीं है। 1920 में जन्मे इस दिग्गज संघ प्रचारक की जन्मशती मनाई जा चुकी है। क्या संघ को उनकी याद आती है?
प्राइवेट निवेश के खिलाफ नहीं थे ठेंगड़ी
ठेंगड़ी प्राइवेट निवेश के कतई खिलाफ नहीं थे। लेकिन उनकी मंशा थी कि अर्थव्यवस्था में एमएसएमई बड़ी भूमिका निभाएं। वे कारोबारी मैत्री की प्रवृत्ति के उभरने के भी खिलाफ थे। अटल और ठेंगड़ी युवावस्था में संघ से जुड़ गए थे। व्यक्ति प्रचारक बने। एक प्रधानमंत्री बना तो दूसरा दो मर्तबा (1964-76) राज्यसभा सदस्य चुने गए, लेकिन ठेंगड़ी महत्ता विचारक के रूप में विशेष रही। माना जाता है कि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी को मूर्त रूप देने में उनकी खास भूमिका रही थी।
ठेंगडी हैं इनके जनक
भारतीय मज़दूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच का जनक ठेंगड़ी को माना जाता है। विद्यार्थी परिषद, अधिवक्ता परिषद, ग्राहक पंचायत और भारतीय विचार केंद्र के वे संस्थापक सदस्यों में थे। उस समय तैयार किए गए ये संगठन आज भाजपा के लिए काम आते हैं। दिलचस्प बात ये है कि ठेंगड़ी ने पचास के दशक में जब बीएमएस और बीकेएस का गठन किया था उस दौरान ट्रेड यूनियन का काम कम्यूनिस्ट ही किया करते थे। उस समय लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान। ये नारा लगा करता था।
