नई दिल्ली. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उद्धव ठाकरे के बीच मचा सियासी घमासान इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में है। विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला किया जाना है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को शिवसेना विधायकों की अयोग्यता और एकनाथ शिंदे के शपथ ग्रहण को चुनौती देने वाली उद्धव गुट की कई याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई। लेकिन इस मामले में फिलहाल कोई फैसला नहीं दिया है। मामले की अगली सुनवाई अब 1 अगस्त को की जाएगी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक हफ्ते में दोनों पक्षों को हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस एनवी रमन, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मामले की सुनवाई की।
उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश करते हुए कहा कि अगर इस तरह से चुनी हुई सरकार पलटी गई तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा। इस तरह की परंपरा की शुरुआत न सिर्फ महाराष्ट्र के लिए बल्कि देश में कहीं के लिए ठीक नहीं है। सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जब मामलों की सुनवाई कर रहा था तब महाराष्ट्र के राज्यपाल को नई सरकार को शपथ नहीं दिलानी चाहिए थी। पार्टी द्वारा नामित आधिकारिक सचेतक से इतर किसी सचेतक को अध्यक्ष की ओर से मान्यता मिलना दुर्भावनापूर्ण है। सिब्बल ने कहा कि जनादेश का क्या हुआ? दसवीं अनुसूची से उलट काम किया और दलबदल के लिए उकसाने में इस्तेमाल किया है।
मामला दलबदल का नहीं
उधर, एकनाथ शिंदे गुट तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि मामला दलबदल का नहीं है। अगर आप किसी और दल में न जाएं और अपने ही नेता पर सवाल उठाएं तो इसमें क्या गलत है? दलबदल का कानून तब लागू होता है, जब आप किसी और दल के साथ चले जाएं। साल्वे ने दलील दी कि क्या जिसके पास 15 से 20 विधायकों का समर्थन नहीं है, उसे सत्ता में वापस लाया जा सकता है? उन्होंने कहा कि सीएम ने बहुमत खो दिया था। पार्टी के अंदर ही बिना किसी दलबदल के आवाज उठाना गलत नहीं है।