नई दिल्ली: देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू में कारगिल विजय दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस समारोह में राजनाथ सिंह ने कहा कि आज देश आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। सिंह ने चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से भी कई युद्ध हुए. पचास के दशक में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में शायद ही कोई कार्रवाई की हो, लेकिन 1962 में चीन ने लद्दाख में जो किया स्पष्ट था कि चीन के इरादे सही नहीं थे। पीआके पर पाकिस्तान का अनधिकृत क़ब्ज़ा है। भारत की संसद में इसे मुक्त कराने का एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित है। शिव के स्वरूप बाबा अमरनाथ हमारे पास हैं, पर शक्ति स्वरूपा शारदा जी का धाम अभी एलओसी के उस पार है। राजनाथ सिंह ने कहा कि तब पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे। कई लोग पंडित जवाहरलाल नेहरू की आलोचना करते हैं। मैं भी एक विशेष राजनीतिक दल से आता हूं। मैं भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की आलोचना नहीं करना चाहता हूं। किसी भी प्रधानमंत्री की नीयत पर सवालिया निशान नहीं है। नीतियों की आलोचना की जा सकती है, लेकिन मैं ये जानता हूं किसी भी प्रधानमंत्री की नीयत में खोट नहीं हो सकती है। नीयत को लेकर आलोचना नहीं की जा सकती है।
सिंह ने कहा कि आजादी के बाद भारत को पांच युद्ध लडऩे पड़े, जिनमें 1948 का हमला, 1962 का चीन के साथ युद्ध उसके बाद 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और सबसे आखिर में 1999 में हुआ कारगिल युद्ध, जो कि एक फुल स्केल वॉर न होकर पाकिस्तान के साथ लड़ा गया एक लिमिटेड वॉर था. इन पांचों युद्धों में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का यह पूरा इलाका मैन वार थियेटर रहा है। आजादी के बाद से ही इस पूरे इलाके पर देश के दुश्मनों की गिद्ध दृष्टि लगी रही है, लेकिन भारतीय सेनाओं ने अद्भुत पराक्रम और बलिदान का परिचय देकर हर बार दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम कर दिखाया है।
कई शहीदों का जि़क्र किया
राजनाथ समारोह में कई जाबांजों का जि़क्र भी किया। जिन्होंने देश के लिए अपनी कुर्बानी दी है। उन्होंने कहा कि यहीं जम्मू क्षेत्र का एक जिला है। राजौरी जहां एक छोटी सी जगह है, झंगड़। इस झंगड़ पर 1948 में कबाइलियों ने कब्जा कर लिया था और उसे मुक्त कराने की जिम्मेदारी जिस बहादुर फौजी अफसर डाली थी, उनका नाम ब्रिगेडियर उस्मान था। जब झंगड़ हाथ से निकला था तो ब्रिगेडियर उस्मान ने संकल्प लिया था कि जब तक झंगड़ पर पुन: भारत का झण्डा नहीं लहराएगा तब तक वे किसी पलंग पर नहीं सोएंगे। जैसे महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की आजादी को लेकर संकल्प किया था, वैसा ही कुछ संकल्प ब्रिगेडियर उस्मान ने भी किया थाद्ध। ब्रिगेडियर उस्मान को आज आजादी अमृत महोत्सव में बार-बार याद करने की जरूरत है। 1948 के युद्ध में इसी तरह मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान भी स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। मेजर सोमनाथ शर्मा ने बहादुरी और बलिदान से जम्मू और कश्मीर को दुश्मनों के हाथों में जाने से बचाया। 1948 में पहली बार भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम किया और आज जो जम्मू और कश्मीर का जो स्वरूप हम देख रहे है उसे बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। कारगिल युद्ध में अनेक ऐसी शौर्य गाथाएं है। जिनका स्मरण कर हर भारतवासी रोमांच और गौरव के भाव से भर उठता है। कैप्टन विक्रम बत्रा ने कहा था कि जीत गया तो तिरंगा लहराऊंगा, अगर हार गया तो तिरंगे से लिपट कर आऊंगा. उन्होंने भारत के लड़ते हुए अपना बलिदान कर दिया।