जयपुर. जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री डॉ. महेश जोशी ने कहा कि डेनमार्क में पेयजल वितरण में मीटरिंग सिस्टम काफी प्रभावी है एवं पानी के उपयोग के विरूद्ध राजस्व वसूली तकरीबन 100 प्रतिशत है। वहां पानी का लीकेज 5 प्रतिशत से कम है। यह एक बेहतरीन मैनेजमेंट का उदाहरण है। डेनमार्क में भूजल दोहन के साथ ही भूजल को रिचार्ज करने पर भी ध्यान दिया जाता है। वहां लागू की गई तकनीक अपनाकर हम पेयजल वितरण में विभिन्न कारणों से होने वाले लीकेज को कम कर सकते हैं। डॉ. जोशी बुधवार को सचिवालय स्थित अपने कक्ष में डेनमार्क यात्रा के बारे में अनुभव मीडिया के साथ साझा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि आरूस शहर में 24 घंटे पेयजल की व्यवस्था है। वहां उपयोग किए जा रहे पेयजल की मात्रा को 210 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से घटाकर 104 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन किया गया है। डेनमार्क के अनुभवों से सीखते हुए राजस्थान में भी ऐसे प्रयास किए जा सकते हैं।
जलदाय मंत्री ने बताया कि डेनमार्क में संसाधनों के सेल्फ सस्टेनेबल (आत्मनिर्भर) होने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। वहां के ज्यादातर प्रोजेक्ट्स एनर्जी न्यूट्रल होते हैं, उसका पर्यावरण पर भी विपरीत असर नहीं पड़ता। डेनमार्क में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकल वाली इस स्लज को उपयोग में लेते हुए इसमें से फोस्फॉरस आधारित खाद बनाई जा रही है एवं इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन में भी किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मॉरसेलिस बॉर्न वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का संद्धारण एवं संचालन नवीनतम आईटी तकनीक एवं स्काडा सिस्टम को काम में लेते हुए पूर्ण दक्षता से किया जा रहा है।
डॉ. जोशी ने बताया कि डेनमार्क के आरूस शहर की नदी को विकसित कर उसके दोनों किनारों पर सौन्दर्यकरण किया गया है। उन्होंने कहा कि उदयपुर शहर में स्थित गुमानीया नाले को भी आरूस स्थित इस नदी की तर्ज पर विकसित करने की योजना बनाई जाएगी और उसका सौन्दर्यकरण किया जाएगा। जलदाय मंत्री ने बताया कि डेनमार्क के वॉटर सेक्टर में काम कर रहे विश्वविद्यालयों द्वारा भूजल की उपलब्धता और स्थिति मापने के लिए तकनीक विकसित की है। इससे एरियल सर्वे एवं जमीनी सर्वे द्वारा भूजल की स्थिति का वास्तविक आंकलन किया जा सकता है। यह तकनीक राजस्थान में भूजल की स्थिति मापने में काफी कारगर सिद्ध हो सकती है। पेयजल प्रबंधन का फ्रेमवर्क तैयार करने, शहरी जल, स्मार्ट वॉटर सप्लाई, वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट, सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से ऊर्जा उत्पादन तथा नदियों के पुनरूद्धार जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग लिया जा सकता है।
डॉ. जोशी ने कहा कि डेनमार्क में जो तकनीक अपनाई गई हैं, उसका उपयोग निश्चित रूप से यहां पेयजल प्रबंधन एवं वेस्ट वॉटर मेनेजमेंट में उपयोग किया जाएगा। राजस्थान एवं डेनमार्क आपस में तकनीक का आदान-प्रदान करेंगे और आपसी समन्वय को आगे बढ़ाया जाएगा। राजस्थान और डेनमार्क कीे साझेदारी बढ़ाने की ओर एक कदम और बढ़ाते हुए उदयपुर एवं आरूस शहर के बीच चल रहे परस्पर तकनीकी सहयोग को डेनमार्क के अन्य शहरों और राजस्थान के अन्य शहरों जैसे जयपुर एवं जोधपुर तक बढ़ाया जाएगा। जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री ने बताया कि 6 दिवसीय यात्रा के दौरान प्रतिनिधि मण्डल ने डेनमार्क में स्मार्ट वाटर सप्लाई, एकीकृत शहरी जल योजना, अर्बन प्लांनिग एण्ड गवर्नेंस, वेस्ट वॉटर प्लानिंग एण्ड मैनेजमेंट, पेयजल, नदियों के कायाकल्प एवं शहरी आधारभूत संरचना जैसे विषयों की गहन जानकारी ली।
अतिरिक्त मुख्य सचिव, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी डॉ. सुबोध अग्रवाल ने बताया कि डेनमार्क में जल प्रबंधन बेहतरीन है। वे लोग पानी की एक-एक बूंद को काम में लेते हैं। हमारे यहां करीब 40 प्रतिशत पानी से हमें कोई आय नहीं होती, जबकि वहां नॉन रेवेन्यू वॉटर सिर्फ 5 प्रतिशत है। पेयजल की दरें 500 रूपये प्रति क्यूबिक मीटर हैं। वहां सीवरेज वॉटर को प्यूरिफाई करके ऊर्जा उत्पादन किया जाता है और खाद भी बनाई जाती है, जिसे किसानों को बेचा जाता है। इस अवसर पर जल संसाधन सचिव आनंद कुमार, सचिव स्वायत्त शासन सचिव जोगाराम एवं अधीक्षण अभियंता पीएचईडी शुभांशु दीक्षित ने भी डेनमार्क यात्रा के दौरान सीखी गई तकनीक के बारे में अनुभव साझा किए।