नई दिल्ली. ताइवान और चीन के बीच उपजा तनाव पूरे चरम पर है। दोनों पक्ष दक्षिण चीन सागर में शक्ति प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं। अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की यात्रा के बाद भड़के चीन ने ताइवान के पास पिछले कई दिनों से युद्धाभ्यास शुरू कर रखा है। चीन ताइवान को समुद्री और हवाई मार्ग से काटने की कोशिश में जुटा हुआ है। यही वजह कि चीन ने ताइवान के अब तक के सबसे करीब जाकर रॉकेट और मिसाइलों की बौछार की है। इस बीच रक्षा और विदेशी मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने भारत को चेतावनी दी है कि चीन की सेना ने अगर ताइवान पर कब्जा कर लिया तो उसका अगला लक्ष्य अरुणाचल प्रदेश हो सकता है। चेलानी ने जापानी अखबार निक्केई में लिखे अपने लेख में कहा कि अगर ताइवान पर चीन कब्जा कर लेता है तो बीजिंग का अगला लक्ष्य भारत का अरुणाचल प्रदेश हो सकता है। अरुणाचल प्रदेश ताइवान से 3 गुना बड़ा है। चीन ने अपने नक्शे में पहले ही दिखाया है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। इसलिए ताइवान की सुरक्षा भारतीय सुरक्षा के लिए बहुत अहम है। 28 मसी बीतपे के बावजूद चीन का लद्दाख में जमीन पर कब्जा करने का अभियान जारी है। इसके बाद भी भारत चीन के साथ मिलकर पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच शंघाई सहयोग संगठन के शिखर बैठक के दौरान संभावित मुलाकात के लिए तैयारी कर रहा है।
भारत ताइवान के साथ राजनीतिक संबंधों करे मजबूत
अमेरिका की चर्चित पत्रिका फॉरेन पॉलिसी ने अपने एक लेख इंडियाज ताइवान मूवमेंट में लिखा है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में हालात बदल चुके हैं। अब समय है कि भारत ताइवान के साथ अपने राजनीतिक संबंधों को मजबूत करे। पत्रिका ने कहा कि जनता के उत्साह और सेमीकंडक्टर से द्विपक्षीय रिश्ते नहीं बनते हैं। भारत ने ताइवान के साथ रिश्ते को बहुत सतर्कता से बनाया है। उसे पता है कि वह चीन की लक्ष्मण रेखा का परीक्षण कर रहा है। चीन अगर ताइवान की नाकेबंदी करता है या हमला करता है तो यह सेमीकंडक्टर की सप्लाइ को प्रभावित करेगा।
फॉरेन पॉलिसी ने कहा कि चीन के इस कदम से भारत के दोस्तों जापान और अमेरिका को अपमानित होना पड़ सकता है। इससे पश्चिमी प्रशांत महासागर में चीन का दबदबा बढ़ जाएगा। यह स्वतंत्र और मुक्त हिंद प्रशांत क्षेत्र के विचार के लिए घातक हो सकता है। भारत को ताइवान के प्रति अपनी नीतियों में तुरंत दो बदलाव करने की जरूरत है। पहला भारत को तत्काल जी-7 देशों के ताइवान को अंतरराष्ट्रीय तकनीकी निकायों में पर्यवेक्षक का दर्जा दिए जाने की कोशिशों को अपना समर्थन देना चाहिए। दूसरा- भारत को ताइवान के साथ सामान्य राजनीतिक संपर्क फिर से बहाल करने चाहिए।
भारत ने एक चीन नीति पर ड्रैगन को दिया झटका
ताइवान संकट पर भारत ने बहुत नपी तुल प्रतिक्रिया दी है। भारत ने यथास्थिति को बदलने के किसी एकतरफा प्रयास से बचने का अनुरोध किया है। भारत ने चीन की मांग के बाद एक चीन नीति के समर्थन में साल 2010 के बाद अब तक कोई बयान नहीं दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह भारत की ओर से चीन के कदमों की एक तरह से आलोचना ही है। चीन के दबाव के बाद दुनिया के दर्जनों देशों ने एक चीन नीति को दोहराया है। इसमें भारत के सभी पड़ोसी देश शामिल हैं।