जयपुर. इन दिनों प्रदेश के निजी चिकित्सक सरकार की ओर से पारित किए गए बिल राइट टू हेल्थ के विरोध में हैं। ऐसे में प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पर ग्रहण लगा हुआ है। चिकित्सक राइट टू हेल्थ बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार बिल वापस किए जाने के मूड में नहीं है। राज्य सरकार ने एक बयान जारी कर आरटीएच बिल को लेकर कुछ डॉक्टर्स पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है। राज्य सरकार की ओर से जारी बयान में कहा है कि ऐसा देखा जा रहा है कि कुछ चिकित्सक राइट टू हेल्थ बिल के बारे में मीडिया में भ्रम पैदा कर रहे हैं, जो कि आधारहीन है। कोई भी व्यक्ति इलाज के अभाव में कष्ट नहीं पाए, इस मानवीय सोच के साथ राज्य सरकार स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक लेकर आई है।
विधेयक के मूल प्रारूप को लेकर चिकित्सक समुदाय को कुछ आपत्तियां थीं। यह विधेयक आईएमए एवं चिकित्सक समुदाय के अन्य प्रतिनिधियों के साथ विभिन्न बैठकों में मिले सुझावों के आधार पर इन आपत्तियों को दूर कर पक्ष-विपक्ष के सदस्यों की सर्वसम्मति से विधानसभा में पारित किया है। मूल बिल में आपातकालीन स्थिति को परिभाषित नहीं किया था, लेकिन संशोधित बिल में चिकित्सकों की इस आपत्ति का निवारण किया है। आईएमए के सदस्यों के अनुरोध पर दुर्घटना, सर्पदंश या जानवर के काटने तथा स्टेट हेल्थ अथॉरिटी द्वारा परिभाषित इन आपात स्थितियों को शामिल किया है। आईएमए के अनुरोध पर ही दुर्घटनाजनित आपात स्थिति, डेजीगनेटेड हेल्थ केयर सेंटर, इमरजेंसी प्रसूति केयर, प्राथमिक उपचार, स्टेबलाइजेशन तथा स्थानांतरण एवं परिवहन को बिल में शामिल किया गया है।
राज्य सरकार के अनुसार मूल बिल में आपातकालीन स्थितियों में उपचार के पुनर्भरण का भी उल्लेख नहीं था। संशोधित बिल में इसे शामिल किया है कि आपातकालीन उपचार के बाद यदि मरीज चिकित्सा संस्थान को भुगतान करने में असमर्थ रहता है तो राज्य सरकार उसका पुनर्भरण करेगी। इसी प्रकार मूल बिल में नागरिकों के कर्तव्य एवं चिकित्सा कार्मिकों के अधिकारों का भी उल्लेख नहीं था, जबकि संशोधित बिल में चिकित्सा कार्मिकों एवं नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों तथा दायित्वों को शामिल किया है, जिन्हें नियमों में परिभाषित भी किया जाएगा।
प्राधिकरण का गठन
स्वास्थ्य अधिकार अधिनियम की समुचित पालना के लिए दो राज्य स्तरीय एवं एक जिला स्तरीय प्राधिकरण का गठन किया है। राज्य स्तरीय प्राधिकरण में दो सदस्य आईएमए के शामिल किए हैं। मूल प्राधिकरण राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति की अध्यक्षता में गठित किया है। इसमें भी आईएमए के दो चिकित्सक सदस्य शामिल बिल में शिकायत निवारण तंत्र के लिए चिकित्सा संस्थान को कार्यवाही का प्रावधान नहीं था, लेकिन संशोधित बिल में चिकित्सा संस्थानों की ओर से तीन दिन के भीतर शिकायत का निवारण करने का प्रावधान शामिल किया है। यदि तीन दिन में चिकित्सा संस्थान शिकायत का निवारण नहीं करता है तो जिला स्तरीय प्राधिकरण को शिकायत भेजी जाएगी।

मूल बिल में सिविल कोर्ट को सुनवाई का अधिकार नहीं था, लेकिन संशोधित बिल में सिविल कोर्ट में सुनवाई का प्रावधान किया गया है। राज्य सरकार के अनुसार विधेयक में ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं किया है जो चिकित्सकों या निजी चिकित्सा संस्थानों के हितों के विरूद्ध हो। कुछ चिकित्सकों की ओर से बिल के पुराने प्रारूप को मीडिया एवं अन्य माध्यम से प्रचारित कर भ्रम पैदा किया जा रहा है।
राज्य सरकार ने की भ्रम दूर करने की कोशिश
राज्य सरकार के बयान में कहा है कि यह प्रचारित किया जा रहा है कि आंखों के अस्पताल में हार्ट अटैक के मरीज को उपचार कैसे मिलेगा, जबकि बिल में अस्पतालों को उनके स्तर के अनुसार ही उपचार उपलब्ध कराने का स्पष्ट उल्लेख है, अर्थात आंखों के अस्पताल में आंखों का ही उपचार किया जाएगा। इसी प्रकार यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना एवं जांच योजना के रहते राइट टू हेल्थ की आवश्यकता नहीं है, जबकि राज्य में राइट टू हेल्थ लागू होने पर नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाओं की गारंटी मिलेगी। राज्य सरकार ने चिकित्सकों से अपील की है कि उन्हें जनसेवा की भावना से लाए स्वास्थ्य के अधिकार को सफलतापूवर्क लागू करने में आगे बढ़कर सहयोग करें, ताकि मानव सेवा के इस सर्वोत्तम पेशे का मान और बढ़ सके।
