चूरू. जिला परिषद सभागार में जिला कलक्टर सिद्धार्थ सिहाग की अध्यक्षता में गुणवत्तापूर्ण, विधिसम्मत एवं त्रुटिहीन निर्णय लेखन को लेकर राजस्व अधिकारियों की कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला को संबोधित करते हुए जिला कलक्टर सिहाग ने कहा कि निर्णय लेखन में भाषा की प्रभावी भूमिका होती है। भाषा का प्रयोग पीठासीन अधिकारी की वाद निवारण पद्धति के तार्किक व बुद्धि प्रवण या भाव प्रवण होने, शालीन होने, मर्यादित होने, संतुलित होने के साथ तथ्यान्वेषण एवं विधि के निरूपण का प्रभावी वाहक होने को दर्शाता है। पीठासीन अधिकारी प्रिवी-काउंसिल के निर्णय पढ़ें और जटिल विवाद एवं गूढ़ विधि का भी सीधे, स्पष्ट, शुद्ध एवं बोधगम्य भाषा में निर्वाचन करें। उन्होंने बताया कि निर्णय लेखन हेतु न्यायिक भाषा पूर्णतः स्पष्ट, सीधी, अद्विअर्थी, तार्किक, विवेचनात्मक, सयंत एवं शालीन होने के साथ व्याकरणिक रूप से शुद्ध होनी चाहिए।
कार्यशाला में मास्टर ट्रेनर एसडीएम श्योराम वर्मा ने निर्णय के मूलभूत तत्वों की जानकारी दी और बताया कि निर्णय हमेशा न्याय प्रदायक होना चाहिए। अगर निर्णय में न्याय झलकता है तो मनुष्य जीवन की विभिन्न परेशानियां सहन कर लेता है। न्यायिक निर्णय उपलब्ध तथ्यों एवं साक्ष्यों की सघन समीक्षा एवं गहन अन्वेषण उपरांत सत्य की खोज व उद्घाटन है। इसके लिए आवश्यक है कि न्यायिक पीठासीन अधिकारी का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ हो तथा वह अपने दिल व दिमाग को पूर्वाग्रह, पूर्व धारणाओं एवं पूर्व मान्यताओं से मुक्त रखें। वर्मा ने बताया कि निर्णय में अनावश्यक कथनों एवं अप्रासंगिक तथ्यों का समावेश नहीं होना चाहिए। निर्णय स्वयं में परिपूर्ण व सुसंगत तथ्यों, साक्ष्यों, विधिक बिंदुओं एवं समीचीन दृष्टांत से परिपूर्ण होना चाहिए। निर्णय में निष्कर्ष के समस्त कारणों का समावेश होना चाहिए।
इस दौरान चूरू एडीएम लोकेश गौतम, सुजानगढ़ एडीएम भागीरथ साख, सरदारशहर एसडीएम बिजेंद्र सिंह, एसडीएम तारानगर सुभाष कुमार, राजगढ़ एसडीएम रणजीत कुमार, बीदासर तहसीलदार द्वारकाप्रसाद, चूरू तहसीलदार धीरज झाझड़िया, राजलदेसर नायब तहसीलदार मो असलम, तारानगर नायब तहसीलदार सुरेंद्र कुमार मीणा, बीदासर के नायब तहसीलदार सुभाषचंद्र, चूरू नायब तहसीलदार पालाराम सहित अन्य अधिकारीगण मौजूद रहे।